भूमण्डलीय तापन (भूमंडलीय ऊष्मीकरण) से आप क्या समझते हैं? वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभाव की विवेचना करें। अथवा, वैश्विक ऊष्मा के कारणों का परीक्षण करें।

भूमण्डलीय तापन से तात्पर्य वायुमण्डलीय एवं धरातलीय तापमान में वृद्धि एवं भूमण्डलीय विकिरण सन्तुलन में परिवर्तन तथा उसके कारण स्थानीय, प्रादेशिक एवं वैश्विक स्तर पर जलवायु में परिवर्तन होना है। पृथ्वी तथा वायुमण्डल के विकिरण सन्तुलन पर पड़ने वाले हरित गृह गैसों के प्रभावों को विकिरण संवर्द्धन कहते हैं।

भूमण्डलीयकरण तापन का गहराता संकट विश्व के सभी राष्ट्रों के समक्ष एक गम्भीर चुनौती है। समुद्रतटीय राष्ट्र तो और अधिक परेशान हैं क्योंकि इस प्रभाव से आर्कटिक सागर एवं अण्टार्कटिक महाद्वीप के विशाल हिमखण्ड के पिघल जाने से समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होगी। फलतः अधिकांश भू-भाग जल में समाहित हो जायेंगे। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाइ-ऑक्साइड, मीथेन एवं क्लोरोफ्लोरो कार्बन (सी.एफ.सी.) की मात्रा में वृद्धि हो रही है। यही कारण है कि विगत सौ वर्षों में वायुमण्डल में प्राण वायु ऑक्सीजन में कमी हुई है। सभी देशों ने इस तथ्य को स्वीकार कर लिया है कि ये गैसें सूर्य की गर्मी को पृथ्वी पर ही कैद कर रही हैं जिससे धरातल के तापमान में वृद्धि हो रही है और पृथ्वी पर ग्रीन हाउस प्रभाव की प्रक्रिया प्रारम्भ हो रही है। ग्रीन हाउस प्रभाव की प्रक्रिया ही भूमण्डलीय ऊष्मीकरण है।

आसान शब्दों में समझें तो ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है ‘पृथ्वी के तापमान में वृद्धि और इसके कारण मौसम में होने वाला परिवर्तन।’ पृथ्वी के तापमान में हो रही इस वृद्धि (इसे 100 सालों के औसत पर । फरिनहाइट आँका गया है) के परिणाम बारिश के तरीकों में दिलाव, हिमखंडों और मलेशियरों के पिघलने, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और वनस्पति तथा जंतु जगत पर प्रभावों के रूप में सामने आ सकते हैं। मौसम वैज्ञानिक तो यह भविष्यवाणी तक कर चुके हैं कि अगर ग्लोबल वार्मिंग की रफ्तार न थम सकी, तो कुछ दशकों में समुद्रों के किनारे बसे महानगर तक डूब जाएंगे। वैश्विक ऊष्मा की वृद्धि के निम्नांकित कारण हैं-

  1. औद्योगीकरण: उद्योगों में इंधनों, कोयला तथा पेट्रोलियम आदि का प्रयोग होता है। एक अनुमान के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष 4 अरब टन जीवाश्म इंधन की खपत हो रही है। फलतः विभिन्न प्रकार की गैसें वायुमण्डल में पहुँच रही हैं। इनमें कार्बन डाइ-ऑसाइड प्रमुख ग्रीन हाउस गैस है। एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय प्रतिवर्ष 5-7 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड पेट्रोल तथा कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन जलाने से वायुमण्डल में पहुंच रही है।

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