तटीय प्रदेशों (Coastal areas) में स्थलाकृतिक आकृतियों के विकास का विवरण दीजिए।अथवा, तटीय स्थलाकृति का विवरण दीजिए।

तटीय प्रदेशों में निम्नलिखित अपरदनात्मक स्थलाकृतिक आकृतियों का विकास होता (i) तटीय भृगु एवं गुफाएँ (Seacliff and Caves) लहरों द्वारा तटीय भागों की चट्टानों पर निरन्तर प्रहार एवं कटाव के कारण तट के ढाल भागों का ढाल और तेज होता जाता है। इससे वहाँ खड़े ढाल वाली चट्टानें बनती हैं। इन्हें हो तटीय भृगु कहते … Read more

वायु अपरदन से निर्मित विभिन्न स्थलाकृक्तिक विशेषताओं (Landforms formed by the erosion of wind) की विवेचना करें।

हवा या पवन का अपरदन कार्य शुष्क या मरुस्थलीय प्रदेशों में विशेष महत्त्वपूर्ण रहता है। ऐसा कार्य हवा की गति, हवा में बालू की मात्रा, बालू के कणों का आकार, चट्टाने की कठोरता एवं जलवायु की प्रकृति पर निर्भर करता है। हवा निम्न प्रकार से अपने प्रभावित प्रदेशों में अपरदन कार्य करती है: (अ) अपघर्षण … Read more

अपरदन चक्र के संदर्भ में एल.सी. किंग की संकल्पना की विवेचना कीजिए।

पर्वतों से घिरे हुए बंद बेसिनों में ही डेविस का शुष्क चक्र लागू होता है। लेकिन संसार के विभिन्न मरुस्थलों में इससे भिन्न स्थलाकृक्ति मिलती है जहाँ डेविस का शुष्क चक्र विफल हो जाता है, क्योंकि इन प्रदेशों में पैडीमेन्टेशन की प्रक्रियाएँ अपरदन चक्र के पूर्ण करने में महान योग देती हैं। अतः दक्षिणी अफ्रीकी … Read more

सामान्य अपरदन चक्र (Normal cycle of erosion) के सम्बन्ध में डेविस के

सर्वप्रथम डेविस महोदय ने 1899 में भौगोलिक चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन किया तथा बताया कि “भौगोलिक चक्र समय की वह अवधि है, जिसके अन्तर्गत एक उत्थित भूखण्ड अपरदन के प्रक्रम द्वारा प्रभावित हो कर एक आकृत्तिविहीन समतल मैदान में बदल जाता है।” इस तरह डेविस ने स्थलरूपों के विकास में चक्रीय पद्धति का अवलोकन … Read more