जलवायु परिवर्तन-जलवायु सनातन सत्य है। जलवायु में परिवर्तन के कारग विशालकाय जीव जैसे डिनोसोर आदि जिनकी इस पृथ्वी पर बहुतायत थी आज उपलब्ध नहीं है। इसी प्रकार राजस्थान के मरु प्रदेश में किसी समय हिमाच्छादन था। वातावरण को गैसों धूलकणे तथा जलवाष्म की मात्रा में आये परिवर्तन और रूप में र्धरातलीय भौतिक दशाओं के परिवर्तन के परिणाम हैं। धरातलीय दशाओं के अतिरिक्त पृथ्वी के आन्तारिक भागों में होने वाला समस्थिति असंतुलन भी इसके लिए कुछ सीमा तक जिम्मेदार है। तारों, ग्रहों तथा उपग्रहों की स्थितियों में परिवर्तन भी पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन को प्रभावित करता है। इस प्रकार जलवायु परिवर्तन को
प्रमुख रूप से तीन कारक प्रभावित करते हैं।
- धरातलीय भौतिक दशाओं में परिवर्तन
- सौर मण्डलीय स्थितियों में परिवर्तन
- भूगर्भिक दशाओं में परिवर्तन ।
उपरोक्त प्रभावी कारकों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत है-
- धरातलीय भौतिक दशाओं में परिवर्तन पृथ्वी के धरातल पर भौतिक दशाओं में परिवर्तन के प्रमुख कारण घरातल में बनने वाली विशालकाय नदी जल परियोजनायें, राजमार्ग तथा रेलमार्ग, विशाल औद्योगिक संस्थान, गहन कृषि वनों का समाप्त होना पृथ्वी पर प्रदूषण की वृद्धि, अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि, नगरीकरण व औद्योगीकरण, जलचक्र एवम् नाइट्रोजन चक्रों का विनाश आदि है।
मनुष्य अपनी क्रियाओं से वातावरण को प्रभावित करता है। मनुष्य प्रकृति का अंग है और प्राकृतिक संतुलनके बिना मानव अस्तित्त्व खतरे में है। वहीं कारण है कि पृथ्वी में अनियंत्रित वनों की कटाई से उष्ण कटिबंधीय वर्षा में परिवर्तन हुये हैं। नगरीकरण व औद्योगीकरण ने हरित पेटी संकल्पना प्रायः समाप्त कर दी है अतः इन क्षेत्रों में ध्वनि, वायु तथा जल प्रदूषणों ने वायुमण्डलीय गैसों में ऑक्सीजन की कमी तथा कार्बन डाईआक्साइड की अधिकता कर दी है।
इसी प्रकार पृथ्वी की आन्तरिक सतह से सिंचाई हेतु अत्यधिक जल निकास से तथा वर्षा द्वारा जल के पुनः सतह पर एकत्र न होने से जल चक्क विनष्ट हो जाता है जल स्तर लगातार गिरता जाता है। बड़े पैमाने पर कीटनाशकों के प्रयोग से वायुमण्डलीय दशाओं में परिवर्तन आता है। पृथ्वी में इनका निर्धारित प्रयोग वायु संतुलन ही स्थापित कर सकता है। चरनोबिल तथा भोपाल दुर्घटनायें विकिरण के प्रभाव को स्पष्ट करती हैं। इन दुर्घटनाओं से स्पष्ट हो चुका है कि गैस तथा परमाणु संयन्त्रों से कितना विनाश हो सकता है। पृथ्वी से प्रेरित परीक्षण हेतु उपग्रहों राकेटों तथा वायुयानों के बढ़ते दबाव से भी वायुमण्डलीय दशाओं में अन्तर आता है।
ये सभी धरातलीय परिवर्तन कम या अधिक मात्रा में जलवायु के विभिन्न कारकों को प्रभावित करते हैं।
- भूगर्भिक दशाओं में परिवर्तन पृथ्वी की सतह तथा वायु मण्डलीय परिवर्तनों का प्रभाव आन्तरिक भागों में पड़ता है। ज्वालामुखी तथा भूकम्पों की संख्या में लगातार वृद्धि पृथ्वी के अन्दर होने वाले परिवर्तनों को सिद्ध करती है। अब तक प्राप्त ज्ञान के अनुसार ज्वालामुखी तथा भूकम्पीय दशाओं का प्रभाव प्रायः पृथ्वी की कमजोर पर्त वाले भागों में होता था। परन्तु अब अत्यन्त ठोस तथा स्थिर भूभागों में भी भूकम्प तथा ज्वालामुखी उद्गार देखने को मिलते हैं। जर्जिया का भूकम्प इसका नवीनतम उदाहरण है।